(देवेश श्रीवास्तव)
सूरज की कीरणों से मीलता है
जीवन का लक्श्य,
और अँधेरे
हो जाते है लुप्त.
होना है गर हमको
सफल जीवन में,
जगाना होगा सूरज जैसा
भाव मन में,
डुबाना होगा इस धरती को
अपनी जगमगाहट में.
प्रक्रित हमारा पग-पग पे
वीश्वास जगाती रहती हैं.
पर हम तो मूर्ख प्राणी अग्यानता
की खाई में गीरते जाते हैं
और आत्मा की सच्चाई को
ठुकराते जाते हैं.
हांसील करना हैं
गर अपना लक्श्य,
समझना होगा आत्मा
की सच्चाई को,
तभी अँधेरा होगा लुप्त
और उज्जवल भिवष्य
होगा हमारी मुट्ठी में.................

जीवन का लक्श्य,
और अँधेरे
हो जाते है लुप्त.
होना है गर हमको
सफल जीवन में,
जगाना होगा सूरज जैसा
भाव मन में,
डुबाना होगा इस धरती को
अपनी जगमगाहट में.
प्रक्रित हमारा पग-पग पे
वीश्वास जगाती रहती हैं.
पर हम तो मूर्ख प्राणी अग्यानता
की खाई में गीरते जाते हैं
और आत्मा की सच्चाई को
ठुकराते जाते हैं.
हांसील करना हैं
गर अपना लक्श्य,
समझना होगा आत्मा
की सच्चाई को,
तभी अँधेरा होगा लुप्त
और उज्जवल भिवष्य
होगा हमारी मुट्ठी में.................
3 comments:
Devesh ...yaar tu to ab "KAVIRAJ"ho gaya hain.kya khub likha hain...
bahut hi mast likha hai yaar vakai man gaye....
bade longo ki tarah likh diya yaar.............really good one .....
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